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रसोई गैस के दाम बढ़े, तेल पर टैक्स बढ़ा लेकिन कीमतें जस की तस: समझिए पूरी कहानी

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हाल ही में केंद्र सरकार ने एलपीजी यानी रसोई गैस की कीमतों में इज़ाफा किया है। वहीं, पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी में वृद्धि की गई है, लेकिन खुदरा कीमतों (retail prices) में कोई बदलाव नहीं किया गया है। यह फैसला आम जनता को सीधा प्रभावित करता है, खासकर ऐसे समय में जब महंगाई पहले से ही चिंता का विषय बनी हुई है।

इस ब्लॉग में हम समझेंगे:

  • रसोई गैस कितनी महंगी हुई

  • पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी क्यों बढ़ाई गई

  • फिर भी दाम क्यों नहीं बढ़े?

  • इसका आम जनता और अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा

रसोई गैस के दामों में कितना इज़ाफा हुआ?

सरकारी ऑयल मार्केटिंग कंपनियों (OMCs) ने बिना सब्सिडी वाले घरेलू रसोई गैस सिलेंडर के दाम में 50 रुपये तक की बढ़ोतरी की है। राजधानी दिल्ली में अब 14.2 किलो का एलपीजी सिलेंडर ₹1,150 की जगह ₹1,200 में मिलेगा। मुंबई, कोलकाता, चेन्नई जैसे अन्य शहरों में भी यही पैटर्न देखने को मिला है।

वजह:
यह बढ़ोतरी अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल और गैस के बढ़ते दामों के कारण की गई है। पिछले कुछ महीनों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में एलपीजी के दाम में करीब 8-10% की वृद्धि हुई है।

पेट्रोल और डीजल पर एक्साइज ड्यूटी क्यों बढ़ाई गई?

केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर ₹2 और डीजल पर ₹1 प्रति लीटर एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी है। इस कदम का मकसद राजस्व (revenue) जुटाना है, खासकर ऐसे समय में जब सरकार को इंफ्रास्ट्रक्चर और सब्सिडी योजनाओं के लिए अधिक फंड की जरूरत है।

फिर भी खुदरा कीमतों में बदलाव क्यों नहीं हुआ?
सरकार और तेल कंपनियों ने फिलहाल इस एक्साइज ड्यूटी का बोझ उपभोक्ताओं पर नहीं डाला है। यानी बढ़ा हुआ टैक्स कंपनियों ने खुद वहन किया है ताकि आम जनता पर सीधा असर न हो।

यह एक अस्थायी राहत हो सकती है, क्योंकि भविष्य में यदि अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल के दाम और बढ़ते हैं, तो कीमतों में बदलाव संभव है।

सरकार का तर्क क्या है?

सरकार का कहना है कि टैक्स बढ़ाना राजकोषीय संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी है। केंद्र सरकार पर विभिन्न योजनाओं और सब्सिडी का खर्च लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में अतिरिक्त टैक्स से मिलने वाला राजस्व जरूरी योजनाओं में मदद करेगा।

लेकिन सवाल ये भी उठता है:
क्या यह बोझ आम आदमी पर धीरे-धीरे डाला जाएगा?
क्या आने वाले महीनों में रिटेल प्राइस भी बढ़ेंगे?

जनता पर असर: सीधा या छुपा हुआ?

रसोई गैस महंगी होने का असर:

  • घरेलू बजट प्रभावित होगा, खासकर मध्यमवर्गीय और निम्न आयवर्ग के परिवारों का।

  • रेस्तरां और फूड इंडस्ट्री पर भी असर पड़ सकता है, जिससे खाने-पीने की चीजों के दाम बढ़ सकते हैं।

तेल की कीमतों पर अप्रत्यक्ष असर:

  • भले ही अभी कीमत न बढ़ी हो, लेकिन टैक्स बढ़ने का असर ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट पर पड़ेगा।

  • इससे सामानों की ढुलाई महंगी हो सकती है और महंगाई को और बढ़ावा मिल सकता है।

विश्लेषण: यह कदम कितना सही?

कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यह कदम फिस्कल डेफिसिट (राजकोषीय घाटा) को कम करने के लिए जरूरी है। यदि सरकार को अधिक टैक्स मिलेगा, तो वह कल्याणकारी योजनाओं में ज्यादा निवेश कर पाएगी।

लेकिन वहीं आलोचकों का तर्क है कि यह कदम गरीब और मध्यम वर्ग की जेब पर बोझ बढ़ाने वाला है। ऐसे समय में जब बेरोज़गारी और महंगाई पहले से बड़ी समस्या बनी हुई है, टैक्स बढ़ाना आम आदमी के हित में नहीं है।

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं क्या हैं?

विपक्षी दलों ने इस बढ़ोतरी को जनता विरोधी करार दिया है। उनका आरोप है कि सरकार आम लोगों की परेशानियों की अनदेखी कर सिर्फ टैक्स वसूली में लगी है।

कई विपक्षी नेताओं ने ट्वीट कर सरकार से एलपीजी की कीमतें वापस लेने और एक्साइज ड्यूटी में कटौती करने की मांग की है।

क्या विकल्प हो सकते थे?

  1. सब्सिडी वापस लाना:
    सरकार चाहती तो रसोई गैस पर सब्सिडी को कुछ हद तक वापस ला सकती थी जिससे गरीबों को राहत मिलती।

  2. वैकल्पिक टैक्स स्ट्रक्चर:
    टैक्स की दरें ऐसी बनाई जा सकती थीं जो आय वर्ग के अनुसार लागू हों।

  3. तेल कंपनियों को राहत पैकेज:
    OMCs को सरकार से सीधे राहत मिलती तो वे कीमतों को स्थिर रख पाते।

आगे क्या हो सकता है?

  • यदि अंतरराष्ट्रीय कीमतें और बढ़ीं, तो पेट्रोल-डीजल के रिटेल दामों में इजाफा संभव है।

  • सरकार यदि राजस्व दबाव महसूस करती है, तो और टैक्स भी लगाए जा सकते हैं।

  • राज्यों से भी VAT में कटौती की उम्मीद की जा सकती है ताकि खुदरा दामों में थोड़ी राहत मिल सके।

निष्कर्ष:

रसोई गैस की कीमतों में बढ़ोतरी और पेट्रोल-डीजल पर टैक्स वृद्धि एक संतुलन की कोशिश है, लेकिन इसका प्रभाव अंततः आम आदमी की जेब पर ही पड़ता है।

जब तक महंगाई और बेरोज़गारी जैसी समस्याएं बनी रहेंगी, तब तक इस तरह के फैसले लोगों में असंतोष पैदा कर सकते हैं। सरकार को चाहिए कि वह इस बढ़ते बोझ को कम करने के लिए दीर्घकालिक नीति बनाए — जिससे आर्थिक विकास के साथ-साथ सामाजिक संतुलन भी बना रहे।

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